क्या आप एक फ्रीलांसर, या वेब डेवेलपर हैं जो भारत के डिजिटल इंडिया का सपना देख रहा हैं ? तो आपको यह मुमकिन करने के लिए एक वेबसाइट बनानी होगी जिससे आप अपनी आवाज़ हर इंटरनेट यूज़र्स तक पहुंचा सकते हैं। सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में कुल ९५४.४० मिलियन इंटरनेट यूज़र्स हैं। अगर इन तक आपको अपनी ब्रांड की आवाज़ पहुँचानी हैं तो आपको भी वेबसाइट बनानी पड़ेगी।
पर क्या आपको पता हैं कि इसको बनाने में कितना बजट लगता हैं? इस ब्लॉग में हम पढ़ेंगे कि भारत में वेबसाइट बनाने के लिए कितना बजट काफी हैं ?
विषयसूची
भारत में वेबसाइट बनाने की क्या ज़रूरत हैं ?
आज के इस डिजिटल युग में हर व्यवसाय को अपनी वेबसाइट बनानी पड़ेगी। वह इसलिए क्यूंकि बिना ऑनलाइन प्रेसेंस के ब्रांड्स अपने प्रतिस्पर्धा को मात दे सकते हैं। एक सर्वे के अनुसार ७६% लोग ऐसे कंपनी पर भरोसा रखते हैं जो उन ही कंपनियों का भरोसा करेंगे जिनके पास वेबसाइट्स हैं।
अगर आप एक उद्यमी या प्रोफेशनल हैं, तो वेबसाइट होने से आप अपने विचारों और सेवाओं को संभावित ग्राहकों के सामने पेश कर सकते हैं। आपके संगठन का साइज़ या नेचर चाहे जो भी हो, आपको ऑनलाइन स्टोरफ्रंट के रूप में काम करने के लिए एक वेबसाइट की आवश्यकता है। वेबसाइट ग्राहकों को आकर्षित करने और सभी आकारों के संगठनों की पहुँच का विस्तार करने में एक आवश्यक भूमिका निभाती हैं।
भारत में वेबसाइट बनाने का कितना खर्चा आएगा ?
वेबसाइट बनाने के खर्च इस बात पर निर्भर करता हैं कि:
- फिक्सड खर्चे: कुछ खर्चे जैसे कि डोमेन रजिस्टर, वेब होस्टिंग, डेवेलपर की सैलरी, और इंजीनयिरिंग स्टाफ।
- वेरिएबल खर्चे: अगर आपको अपने वेबसाइट की लुक्स में कोई बदलाव करने हैं तो यह लगातार बदल सकता हैं। लेकिन यह खर्चा आपके फिक्सड खर्चों से कम ही होगा।
बेसिक खर्चे एक वेबसाइट को बनाने में
सिर्फ वेबसाइट बनाने के लिए ही नहीं बल्कि पूर्ण रूप से किन और चीज़ों पर खर्चा होता हैं, यह देखते हैं।
– डोमेन
डोमेन एक तरीके से आपकी वेबसाइट को दिया गया एक अनोखा एड्रेस हैं जो उसकी पहचान दर्शाता हैं। किसी भी वेबसाइट जो .com, .in, .co या किसी समान एक्सटेंशन में समाप्त होता हैं, उसे डोमेन नेम कहा जाता हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप हमारा डोमेन नेम क्या हैं ब्लॉग ज़रूर पढ़े। माइल्सवेब में। .in डोमेन ₹१ में रजिस्टर हो जाता हैं वहीं .com डोमेन ₹१९९ में रजिस्टर होता हैं। लेकिन औसत देखि जाए तो यह चार्ज ₹१०० से लेकर ₹६००० रूपये तक भी जा सकती हैं सालाना।
– वेब होस्टिंग
आसान शब्दों में वेब होस्टिंग सेवा आपकी वेबसाइट को ऑनलाइन ले जाने का एक ज़रिया होती हैं। इसमें यूज़र्स को बस सर्वर कॉस्ट का भुगतान करना होगा। माइल्सवेब के साथ आप सस्ती वेब होस्टिंग सेवाएं का लाभ उठा सकते हैं। बिगिनर्स लोग शेयर्ड होस्टिंग का चयन कर सकते हैं और बड़े उद्यम यूज़र्स वीपीएस या डेडिकेटेड होस्टिंग सेवाओं का चयन कर सकते हैं।
– वेब डेवलपमेंट
वेबसाइट डेवेलपमेंट की कोई निर्धारित लागत नहीं होती। डेवेलपर की स्पेशल स्किल या फिर अगर वो किसी एजेंसी से जुड़ा हुआ हैं तो ही फिर आपका खर्चा बढ़ सकता हैं। हालांकि कुछ वेब होस्टिंग कंपनियां जैसे कि माइल्सवेब अपने कुछ वेब होस्टिंग प्लान्स के साथ AI वेबसाइट बिल्डर टूल भी देता हैं जिससे आपकी जेब पर ज़्यादा भोज नहीं पड़ेगा।
– कंटेंट
कंटेंट किसी भी वेबसाइट की आपके ग्राहकों के प्रति एक गहरा छाप छोड़ती हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण हैं कि आप अपनी वेबसाइट की एस्थेटिक्स के साथ साथ कंटेंट पर भी ध्यान दें। अपने होमपेज को डिज़ाइन करते समय, कंटेंट की व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण होती है। आप इस लैंडिंग पेज को अपनी कंपनी की वेबसाइट के प्रवेश द्वार के रूप में सोच सकते हैं।
यहाँ सभी जानकारी को इस तरह से व्यवस्थित किया जाना चाहिए कि न केवल विज़िटर की जिज्ञासा को संतुष्ट किया जा सके, बल्कि उन्हें जो चाहिए उसे ढूँढ़ना भी आसान हो। एक सर्वे के अनुसार, जो कंपनियाँ ब्लॉग कंटेंट लिखती हैं, उन्हें उन कंपनियों की तुलना में महीने की लीड में १२६% की वृद्धि मिलती है जो ऐसा नहीं करती हैं। ब्लॉग होने से आपकी कंपनी अपने लक्ष्यों और अन्य जानकारी को दुनिया के साथ शेयर कर सकती है।
– SEO
हर व्यवसाय अपनी वेबसाइट पर अच्छी ट्रैफिक उम्मीद करता हैं और यह तभी मुमकिन होगा जब उस वेबसाइट का SEO सही से हुआ होगा। याद रखें कि कंटेंट की SEO अगर इनहॉउस हैं तो कम लगेगा। और अगर आप एजेंसी के ज़रिये SEO करवाना चाहते हैं तो ₹१५००० पर प्रोजेक्ट से लेकर ₹३०००० रूपये तक का बजट रखना पड़ेगा। आपको बता दें कि अगर वेबसाइट बड़ी है तो यह बजट भी बढ़ सकता हैं। SEO सर्च इंजन रिज़ल्ट्स में आपकी वेबसाइट की विजिबिलिटी को बढ़ा सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपकी वेबसाइट Google, Yahoo! और Bing खोजों के शीर्ष रिज़ल्ट्स में दिखाई दे, आपको SEO में इंगेज होना चाहिए।
– मार्केटिंग और प्रोमोशन
सही मार्केटिंग स्ट्रेटेजी और संसाधनों के साथ आप अपने कंपनी की वेबसाइट की पहुँच बढ़ा सकते हैं। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म (जैसे, Facebook, Instagram, LinkedIn, Twitter, YouTube और Pinterest) के लिए ऑप्टीमाइज़्ड आकर्षक कंटेंट का प्रचार और निर्माण सोशल मीडिया मार्केटिंग का गठन करता है।आज के डिजिटल माहौल में मार्केटिंग और मीडिया एक असीम रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह आपकी वेबसाइट को आपके दर्शकों से अधिक व्यक्तिगत स्तर पर जुड़ने में मदद करता है। आप सोशल मीडिया मार्केटिंग बंडलों के बारे में चिंता किए बिना रह सकते हैं क्योंकि वे Google Ads की तुलना में अधिक किफ़ायती हैं।
आज के डिजिटल युग में एक वेबसाइट बनाना सिर्फ़ एक ज़रूरत नहीं, बल्कि एक स्मार्ट निवेश है जो आपके व्यवसाय, ब्लॉग या व्यक्तिगत ब्रांड को एक नई पहचान देता है। वेबसाइट बनाने का खर्च आपकी ज़रूरतों, फीचर्स और बजट पर निर्भर करता है। चाहे आप एक सिंपल ब्लॉग बनाना चाहते हों या एक प्रोफेशनल ई-कॉमर्स साइट, हर प्रकार के लिए विकल्प उपलब्ध हैं।
इसलिए सही योजना के साथ अपने लक्ष्यों के अनुसार प्लेटफ़ॉर्म, होस्टिंग और डिज़ाइन चुनें। अगर सब कुछ समझदारी से प्लान किया जाए, तो एक असरदार वेबसाइट किफायती दामों में बनाई जा सकती है, जो आपके ऑनलाइन सपनों को साकार करे।
FAQs
क्या मैं खुद वेबसाइट बनाकर खर्च बचा सकता हूँ?
हाँ, आप खुद वेबसाइट बनाकर काफी हद तक खर्च बचा सकते हैं। कई वेबसाइट बिल्डर टूल्स और CMS जैसे WordPress की मदद से बिना कोडिंग के वेबसाइट बनाई जा सकती है। बस डोमेन और होस्टिंग का खर्च देना होता है।
वेबसाइट बनाने के लिए किन चीज़ों की जरूरत होती है?
वेबसाइट बनाने के लिए डोमेन नेम, वेब होस्टिंग, एक डिज़ाइन टेम्पलेट या कस्टम थीम और कंटेंट की जरूरत होती है। अगर आप खुद बना रहे हैं, तो एक वेबसाइट बिल्डर या CMS प्लेटफ़ॉर्म चाहिए होगा। साथ ही, थोड़ी टेक्निकल समझ भी मददगार साबित होती है।
क्या फ्री वेबसाइट बनाना सही है?
फ्री वेबसाइट शुरुआत के लिए ठीक है, लेकिन इसमें लिमिटेड फीचर्स और ब्रांडिंग की कमी होती है। फ्री साइट्स पर आमतौर पर एड्स होते हैं और कस्टम डोमेन नहीं मिलता। प्रोफेशनल वेबसाइट के लिए पेड प्लान ज़्यादा बेहतर होता है।
क्या वेबसाइट डिजाइन और वेबसाइट डेवलपमेंट का खर्च अलग-अलग होता है?
हाँ, वेबसाइट डिज़ाइन और डेवलपमेंट दो अलग-अलग प्रोसेस हैं और इनका खर्च भी अलग होता है। डिज़ाइन में UI/UX और लुक्स पर फोकस होता है जबकि डेवलपमेंट में फंक्शनलिटी और कोडिंग आती है। दोनों के लिए अलग-अलग एक्सपर्ट्स की ज़रूरत होती है।